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भारतीय संविधान (सन १९५० से इंडियन कंस्टीच्यूशन) पर टिप्पणी .... "On the discussion involving Indian Constitution (Bhartiya Sambidhan) since 1950"
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भारतीय संविधान (सन १९५० से इंडियन कंस्टीच्यूशन) पर टिप्पणी .... "On the discussion involving Indian Constitution (Bhartiya Sambidhan) since 1950"
भारतीय संविधान मूल रूप से अम्बेडकर और अन्य लोगों द्वारा रचित दस्तावेज (प्रलेख) नहीं था, बल्कि यह ज्यादातर विदेशी संविधानों (कई देशों के संवैधानिक दस्तावेजों, जिसमे विशेष रूप से अमेरिकी संविधान और ब्रिटिश संविधान हैं) के पूर्वाकृत लेखों अनुसार संकलित किया गया था।
इसके बावजूद, दूसरे संविधानों पर आधारित होने पर भी, भारतीय संविधान में कई बहुत गंभीर त्रुटियां हैं, जैसे कि
(1) यद्यपि ऐसा होना चाहिए था कि भारतीय लोगों को पढ़ाई-लिखाई और नौकरी में सरकार (गवरमेंट) से सहायता निष्पक्ष और बिना भेदवाद के केवल गरीबी और आवयश्कता के आधार पर मिले, परन्तु असलियत में भारतीय संबिधान के अनुसार पढ़ाई-लिखाई और नौकरी में सरकार से सहायता विभाजनकारी और भेदभावपूर्ण है और प्राप्त-कर्ताओं की पूर्वजी जातियों (प्राचीन पारिवारिक व्यवसायों के नाम) पर आधारित है; और
(2) यद्यपि ऐसा होना चाहिए था कि हर भारतीय नागरिक (चाहे क्या धर्म, क्या नसल, क्या जाति, या क्या लिंग: पुरुष या नारी?) को न्याय का बराबर अधिकार हो जो प्रगतिशील, आधुनिक और एकीकृत यू-सी-सी ("यूनिफार्म सिविल कोड" या "समान नागरिक संहिता") पर आधारित हो, परन्तु असलियत में भारतीय संबिधान द्वारा नागरिकों के लिए न्याय बहुत से विभाजनकारी, भेदभावपूर्ण और पुरातन धार्मिक कानूनों के अनुसार है।
इसके बावजूद, दूसरे संविधानों पर आधारित होने पर भी, भारतीय संविधान में कई बहुत गंभीर त्रुटियां हैं, जैसे कि
(1) यद्यपि ऐसा होना चाहिए था कि भारतीय लोगों को पढ़ाई-लिखाई और नौकरी में सरकार (गवरमेंट) से सहायता निष्पक्ष और बिना भेदवाद के केवल गरीबी और आवयश्कता के आधार पर मिले, परन्तु असलियत में भारतीय संबिधान के अनुसार पढ़ाई-लिखाई और नौकरी में सरकार से सहायता विभाजनकारी और भेदभावपूर्ण है और प्राप्त-कर्ताओं की पूर्वजी जातियों (प्राचीन पारिवारिक व्यवसायों के नाम) पर आधारित है; और
(2) यद्यपि ऐसा होना चाहिए था कि हर भारतीय नागरिक (चाहे क्या धर्म, क्या नसल, क्या जाति, या क्या लिंग: पुरुष या नारी?) को न्याय का बराबर अधिकार हो जो प्रगतिशील, आधुनिक और एकीकृत यू-सी-सी ("यूनिफार्म सिविल कोड" या "समान नागरिक संहिता") पर आधारित हो, परन्तु असलियत में भारतीय संबिधान द्वारा नागरिकों के लिए न्याय बहुत से विभाजनकारी, भेदभावपूर्ण और पुरातन धार्मिक कानूनों के अनुसार है।
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