ब्रह्म (ईश्वर) की पूजा में "शिव लिंग" का महत्व ... The significance of "Shiv-ling" in the worship of Brahman (God)
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ब्रह्म (ईश्वर) की पूजा में "शिव लिंग" का महत्व ... The significance of "Shiv-ling" in the worship of Brahman (God)
भगवान (ब्राह्मण, ब्रह्म, ईश्वर) के लिए शिव नाम की उत्पत्ति (आरम्भ) उत्तर-वैदिक (वेदों के बाद के समय का) है, क्योंकि वेदों में भगवान के लिए शिव नाम का कोई उल्लेख नहीं मिलता, जब कि वेदों में "शिव" शब्द का प्रयोग केवल "शुभ" के अनुसार है l
भगवान के लिए शिव नाम संभवतः तब उत्पन्न हुआ और समय के साथ लोकप्रिय हो गया, जब लोगों ने पूजा (यज्ञ) में जलती अग्नि (आग) के बदले लौ (अग्नि-ज्वाला) के ठोस (पत्थर जैसी) आकृति का उपयोग शुरू किया और उस ठोस आकृति को "शिव-लिंग" का नाम दिया ("शिव लिंग" यानी "शुभ प्रतीक"; संस्कृत में शिव का अर्थ है शुभ और लिंग का अर्थ है प्रतीक)।
इस तरह पूजा और प्रार्थना करते समय (देवता को आहुति देने और पूजा में प्रसाद चढ़ाने सहित) जलती अग्नि के स्थान पर ठोस "शिव लिंग" ("शुभ प्रतीक") के उपयोग द्वारा पूजा (यज्ञ) में अग्नि की आवश्यकता नहीं रही, और इस तरह ("शिव लिंग" द्वारा) दिन या रात, किसी भी मौसम में, कहीं भी और किसी भी समय भगवान की पूजा करना आसान और त्वरित हो गया l
याद रहे, जैसे कि पुराने समय में लकड़ियों को रगड़कर आग जलाने की जरूरत पड़ती थी जिसमे काफी मेहनत और समय लगते थे, अब शिव लिंग के कारण पूजा के समय लकड़ियां रगड़ कर आग जलाने में समय और मेहनत बर्बाद करने की जरूरत नहीं रही l
लोगों द्वारा शिव-लिंग का उपयोग करके भगवान की पूजा करने से समय के साथ-साथ भगवान का नाम शिव प्रचलित और प्रसिद्ध हो गया, जबकि "शिव" का पहला और मूल अर्थ "शुभ" था l इसके साथ ही, उत्तर-वैदिक (वेदों के बाद के) समय में, भगवान के नये नाम "शिव" और पूजा के नये साधन "शिव लिंग" का सम्बन्ध गहरा और अटूट हो गया l
याद रहे कि देवता (ईश्वर) के शिव नाम से संबंधित कथाओं की शुरुआत बाद में पौराणिक कहानियों के रूप में सामने आईं और जोड़ी गईं, जो वेदों के बाद (उत्तर-वैदिक) समय की हैं l
भगवान के लिए शिव नाम संभवतः तब उत्पन्न हुआ और समय के साथ लोकप्रिय हो गया, जब लोगों ने पूजा (यज्ञ) में जलती अग्नि (आग) के बदले लौ (अग्नि-ज्वाला) के ठोस (पत्थर जैसी) आकृति का उपयोग शुरू किया और उस ठोस आकृति को "शिव-लिंग" का नाम दिया ("शिव लिंग" यानी "शुभ प्रतीक"; संस्कृत में शिव का अर्थ है शुभ और लिंग का अर्थ है प्रतीक)।
इस तरह पूजा और प्रार्थना करते समय (देवता को आहुति देने और पूजा में प्रसाद चढ़ाने सहित) जलती अग्नि के स्थान पर ठोस "शिव लिंग" ("शुभ प्रतीक") के उपयोग द्वारा पूजा (यज्ञ) में अग्नि की आवश्यकता नहीं रही, और इस तरह ("शिव लिंग" द्वारा) दिन या रात, किसी भी मौसम में, कहीं भी और किसी भी समय भगवान की पूजा करना आसान और त्वरित हो गया l
याद रहे, जैसे कि पुराने समय में लकड़ियों को रगड़कर आग जलाने की जरूरत पड़ती थी जिसमे काफी मेहनत और समय लगते थे, अब शिव लिंग के कारण पूजा के समय लकड़ियां रगड़ कर आग जलाने में समय और मेहनत बर्बाद करने की जरूरत नहीं रही l
लोगों द्वारा शिव-लिंग का उपयोग करके भगवान की पूजा करने से समय के साथ-साथ भगवान का नाम शिव प्रचलित और प्रसिद्ध हो गया, जबकि "शिव" का पहला और मूल अर्थ "शुभ" था l इसके साथ ही, उत्तर-वैदिक (वेदों के बाद के) समय में, भगवान के नये नाम "शिव" और पूजा के नये साधन "शिव लिंग" का सम्बन्ध गहरा और अटूट हो गया l
याद रहे कि देवता (ईश्वर) के शिव नाम से संबंधित कथाओं की शुरुआत बाद में पौराणिक कहानियों के रूप में सामने आईं और जोड़ी गईं, जो वेदों के बाद (उत्तर-वैदिक) समय की हैं l
Re: ब्रह्म (ईश्वर) की पूजा में "शिव लिंग" का महत्व ... The significance of "Shiv-ling" in the worship of Brahman (God)
इसके अतिरिक्त, ब्राह्मण (ईश्वर) के शिव नाम पर आधारित विभिन्न तत्वों (जैसे कि शैव सिद्धांत, शक्तिवाद और प्रत्यभिज्ञा प्रणाली) की उत्पत्ति उत्तर-वैदिक (वेदों के बाद के समय की) है, और वे ब्राह्मणवादी (ईश्वर-वादी या वैदिक) दर्शन, विशेष रूप से सांख्य और वेदांत (द्वैत और अद्वैत), के प्रभाव का संकेत देते हैं।
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